डॉ. अजिंक्य सतीश डगांवकर, अभिभाषक
भारत की धरती ने सदैव इस धरती वासी को बहुत कुछ दिया। किसी को बहुत रुपये दिए, तो किसी को संपत्ति दी, तो किसी को प्रेम दिया और किसी को बहुत रुपये, संपत्ति और प्रेम तीनों दिया।
किसी भी लोकतांत्रिक देश की परिस्थिति कभी एक जैसी नहीं रहती, उसमें उतार-चढ़ाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अभिन्न पहलू है परंतु, जिन लोगों ने भारत में बहुत रुपये और संपत्ति अर्जित की उनमें से अधिकतर लोग भारत की धरती को या तो छोड़ चुके है और कई रुपये अर्जित करने वाले लोग भारत की धरती को छोड़ने के इच्छुक नजर आते हैं, जिसके पीछे उनके अपने व्यक्तिगत कारण है। इन रुपए से समृद्धि पाने वाले लोगों का जाना भारत के विकास के लिए कई रास्तों को बाधित कर रहा है। अगर ऐसे रुपए से समृद्धि पाने वाले लोगों के भारत की धरती को छोड़ने से भारत के विकास में बाधा उत्पन्न होती है, तो ऐसे लोगों को अमीर तो नहीं गरीब जरूर कहा जा सकता है क्योंकि, पेड़ पर जब फल लग रहे थे और उन फलों के लगने का कारण उन रुपए से समृद्धि पाने वाले लोगों के कंपनी के साम्राज्य के पीछे भारत की आम जनता की खून पसीने की कमाई जो शेयरों के रूप लगी हुई है या तो वह डूब गए है या आने वाले समय में डूब सकते है। उस खून पसीने की कमाई वाले आदमी को वास्तविकता में आमिर कहा जाएगा जो आज भी अपने भविष्य को इस सोने की चिड़िया जैसी भारत की धरती पर अपने और अपने परिवार के सपनों को साकार करने के लिए सदैव आशावान है और सोने की चिड़िया जैसी धरती को छोड़ देने वाले ऐसे रुपए से समृद्ध लोगों को गरीब ही कहा जा सकता है।
भारत का नागरिक जिसके पास रुपए से या संपत्ति से समृद्धि नहीं है वह तो हमेशा अमीर ही होता है, वह अमीर ही रहेगा और बहुत सारे रुपए कमाकर अमीर जो भारत छोड़ चले गए वह गरीब ही रहेंगे जब तक वह भारत की धरती पर अपनों के बीच विकास के फलदार वृक्षों को फिर से जीवन प्रदान करने को वापस लौट नहीं आते है अन्यथा भारत की धरती का कर्ज क
अदा करने का सौभाग्य ऐसे भारत की धरती को छोड़ देने वाले गरीब लोगों को कभी प्राप्त नहीं हो पाएगा।