डॉ. अजिंक्य सतीश डगांवकर
किसी किराने की दुकान पर जाएं तो चॉकलेट की मिठास जरूर ₹ 1 की मिलती है लेकिन, आज के छोटे बच्चे भी ₹ 1 की मिठास वाली चॉकलेट खरीदना पसंद नहीं करते हैं। साइकिल स्टैंड पर जाए तो स्टैंड वाला भी ₹ 5 में साइकिल स्टैंड पर रखने देता है। कोई मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने जाए जिस चलचित्र को सरकार टैक्स फ्री कर देती है तो भी मात्र 2 से 3 घंटे के चलचित्र को देखने के लिए कम से कम ₹ 300 तो लगते ही हैं।
यहां बात है हमारे अन्नदाता किसान की। हमारा किसान जिसने कड़ी धूप में मेहनत करके प्याज की फसल लगाई और फसल पकने पर जब वह मंडी में उसे सही दाम पर बेचने जा रहा है तो उसे उसकी प्याज की फसल के ₹ 1 प्रति किलो का भी दाम बमुश्किल मिल रहा है। 50 क्विंटल प्याज बेचने वाले हमारे किसान को कुल लगभग ₹ 5000 की प्राप्ति हो पा रही है। अगर वह फिर से इन रुपयों से भविष्य में अगली फसल लगाना चाहे तो उसके बीज, खाद, कीटनाशक, बिजली, मजदूरी, डीजल और कई अन्य खर्चों का वहन तो उन्हें करना ही पड़ेगा। हमारा प्याज बेचने वाला किसान अपने लल्ला-लल्ली के लिए ₹ 1 की मिठास वाली या खट्टी मीठी वाली चॉकलेट तो दूर, गैस की टंकी की महंगाई के चलते उनके दो जून की रोटी का प्रबंध और उनके शिक्षा और उज्जवल भविष्य का सपना भी साकार करने में असमर्थ असहाय महसूस कर रहा है। हमारे कई किसानो के सामने अब विषम परिस्थिति ऐसी निर्मित हो गई है कि अब वह अपने प्याज की फसल को मंडी तक भी नहीं ले जा पा रहे है और रास्तों पर उस प्याज की फसल को लोगों में अपने घर वापस लौट जाने के लिए और सरकारों को जगाने के लिए मुफ्त मे बांट रहे हैं।
यह हमारे अन्नदाता और उसके परिवार के साथ यह न्याय है या अन्याय है? जरा हम इस पर गहन चिंतन मनन करें जब आज हमारी भोजन की थाली में उस अन्नदाता का प्याज परोसने के लिए उसे काटने जाए, तो उन प्याज से निकलने वाले आंसुओं के साथ, कुछ प्यार भरे न्यायसंगत आंसू मानवता के लिए उस हमारे किसान के लिए भी निकल सके जो मनुष्य है, जिससे हम दृढ़ संकल्पित हो की हमारे अन्नदाता किसान के सपनों को साकार करने के लिए हम अपने स्तर पर सरकारो को जगाने के लिए क्या प्रयास कर सकते हैं फिर क्यों न वह एमएसपी की बात हो या कोई ठोस अन्य उपाय तत्काल प्रभाव से लागू किए जा सके।