दिल्ली। अभियोजन के गवाह के मुकर जाने पर क्या दोषसिद्ध को खारिज किया जा सकता है। इस मामले को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अपील का निराकरण करते हुए यह स्पष्ट किया।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह के साक्ष्य को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने उसके साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया और उससे क्रॉस एक्जामिनेशन की।हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आरोपी की सजा खारिज करने से इनकार कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाह ने अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया।
यह कहा सुप्रीम कोर्ट ने,
“यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की चीफ एक्जाम और क्रॉस एक्जामिनेशन के बीच काफी अंतर है, जस्टिस बीआर गवई द्वारा लिखे गए फैसले ने संकेत दिया कि गवाहों को अभियुक्तों ने जीत लिया और वे एक्जाम-इन-चीफ में बताए गए संस्करण से मुकर गए, जो पूरी तरह से आरोपी को दोषी ठहराता है।
सी. मुनियप्पन और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे अभियोजन गवाहों के साक्ष्य को पूरी तरह से नष्ट या रिकॉर्ड से मिटाया हुआ नहीं माना जा सकता, लेकिन इसे उसी हद तक स्वीकार किया जा सकता है, संस्करण उसकी जांच पर भरोसेमंद पाया गया।
हालांकि, CRPC की धारा 164 के तहत अभियोजन पक्ष के गवाहों और पीड़िता की गवाही की जांच करने के बाद और मेडिकल साक्ष्य के आधार पर अदालत ने कहा कि पीड़िता द्वारा चीफ एक्जामिनेशन में दिए गए बयान की पर्याप्त पुष्टि हुई।
अदालत ने यह भी कहा,
“जब पीड़िता के साथ-साथ अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य का एफआईआर के साथ ट्रायल किया जाता है तो सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज किया जाता है। मेडिकल एक्सपर्ट (पीडब्लू-8) के साक्ष्य से हम पाते हैं कि अभियोजक द्वारा अपने चीफ एक्जामिनेशन में दिए गए बयान की पर्याप्त पुष्टि है।”
अदालत ने अभियोजन पक्ष/पीड़िता की गवाही के आधार पर आरोपी की सजा बरकरार रखी, क्योंकि चीफ एक्जामिनेशन में उसकी गवाही से CRPC की धारा 164 के साथ कथन और विशेषज्ञ साक्ष्य की पर्याप्त पुष्टि हुई।जिसके बाद उक्त अपील खारिज कर दिया गया।
Case Title: सेल्वामणि बनाम राज्य प्रतिनिधि, पुलिस निरीक्षक द्वारा