कभी टॉप 10 में जीतने का किताब किया हासिल । अब देश भर की नजरे इंदौर में नोटा के विकल्प पर।
आदित्य सिंह सोलंकी
इंदौर ।मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर कई मायनों में देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है। स्वच्छता में नंबर वन के तौर पर पहचाने जाने वाला इंदौर ।आम चुनाव में बीजेपी को रिकार्ड मतों से जीत देकर टॉप 10 में अपनी जगह बना चुका है ,लेकिन हाल ही में कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम के मैदान छोड़ने के बाद अब इंदौर में बीजेपी वोट बैंक को बड़ा खतरा बताया जा रहा है ।जहां देशभर का राष्ट्रीय मीडिया और चर्चाएं नोटा को लेकर गर्म है।
दरअसल इंदौर 4 दशकों से बीजेपी का गढ़ रहा है ।यहां सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस से यह सीट जीत कर भाजपा के खाते में डाली थी और उसके बाद से करीब 4 दशकों में बीजेपी ने कभी यहाँ हार का मुंह नहीं देखा, लेकिन इस बार पासे पलटे नजर आ रहे है। बीजेपी की जीत को लेकर संशय नहीं है ,लेकिन नोटा के विकल्प की चर्चा गर्म होने से न सिर्फ बीजेपी का वोट परसेंटेज कम होने की बात सामने आ रही है ।वहीं आम मतदाता चुनाव से दूरी बनाने का का मन बनाता नजर आ रहा है।
क्यों हुए ऐसे हालात ?
दरअसल आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2019 के आम चुनाव में बीजेपी करीब 8 लाख वोटो की बढ़त से इंदौर लोकसभा चुनाव जीती थी। जो देश में टॉप 10 में आता है ।वही इस बार पासा पलटा नजर आ रहा है। दरअसल शह और मात के जिस खेल को भाजपा ने खेला उसमें पार्टी खुद ही उलझ कर रह गई। निर्विरोध जीत एवं अन्य राजनीतिक उठा पटक कर तोड़फोड़ तो की, लेकिन कांग्रेस के अक्षय बम इस तरह फूटे की कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के किले को भी हिला कर रख दिया। अक्षय बम के चुनाव मैदान से बाहर होने तथा भाजपा ज्वाइन करने के पीछे भाजपा की राजनीति भी गर्मा गई है ।जहां अब आम मतदाता असमंजस में है ,क्योंकि अब उसके वोट देने जाने ना जाने से जीत हार पर कोई असर पड़ेगा ऐसा आम मतदाता का मानना है। कांग्रेस से मुकाबला ना होने के चलते अब मतदाता भी मतदान से बचने की बात कहता नजर आ रहा है।
3 दिन की लॉन्ग वेकेशन पर जाने की चर्चाएं गर्म ।
दरअसल इंदौर में 13 में यानि सोमवार को मतदान है। इस दिन कई कार्यालय में अवकाश घोषित रहेगा। वहीं शनिवार और रविवार की छुट्टियां भी साथ आ रही है। भाजपा प्रत्याशी की जीत तय माने जाने पर और कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में नहीं होने पर ज्यादातर मतदाता लॉन्ग वेकेशन पर जाने का प्लान कर रहे हैं। जिसके चलते इंदौर में मतदान के प्रतिशत पर इसका असर पड़ सकता है।
मतदान प्रतिशत बढ़ाने का प्रशासन कर रहा प्रयास।
दरअसल प्रशासन मतदान का प्रतिशत बढ़ाने का निरंतर प्रयास कर रहा है ,लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्य मुकाबला कांग्रेस वर्सेज बीजेपी में होने था।अब मतदाता असमंजस की स्थिति में है ।साथ ही तेज धूप और लू के बढ़ते खतरे को देखकर इंदौर में कई तरह की चर्चाएं गर्म है ।जिसमें नोट का भी एक विकल्प सामने आ रहा है।
पीएम मोदी भी पूछ चुके हैं बूथ संचालकों से इंदौर के हाल ?
दरअसल पूरे देश की निगाहें इस बार इंदौर की हॉट सीट पर है। जहां सबसे ज्यादा नोटा को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। कांग्रेस प्रत्याशी के मैदान में न होने तथा भाजपा प्रत्याशी की लोकप्रियता एवं बीजेपी के ऑपरेशन लोटस के बाद बीजेपी के इस गढ़ में नोटा एक बड़ा खतरा बनकर सामने खड़ा है ।जहां देश भर में नोटा और भाजपा प्रत्याशी जीत के मार्जिन की बात हो रही हैं। वहीं देशभर की मीडिया अब इंदौर की हॉट सीट पर नजर गड़ाए बैठी है ।जहां नोट की चर्चा कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी से ज्यादा गर्म है।
क्या होगा अगर नोटा को अधिक वोट मिले ?
दरअसल चुनाव आयोग के मुताबिक, नोटा के मतों को गिना जाता है। मगर इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाता है। अगर नोटा को 100 फीसदी मत मिलते हैं तो उस निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराया जाएगा। अगर कोई प्रत्याशी एक भी वोट पाता है और बाकी मत नोटा को मिलते हैं तो वह प्रत्याशी विजेता माना जाएगा। नोटा के मतों को रद्द श्रेणी में रखा जाएगा।
पिछले आम चुनाव में नोटा को कितने मत मिले ?
दरअसल 2019 लोकसभा चुनाव में नोटा का वोट शेयर 1.06% था। हालांकि, बिहार में सबसे ज्यादा 2.0% नोटा का वोट शेयर था। सबसे कम नोटा का इस्तेमाल नागालैंड में किया गया। यहां नोटा का वोट शेयर कुल मतों का 0.20 फीसदी रहा। 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 65,22,772 मत नोटा को पड़े थे।