दिल्ली । पक्षकार के अलाव किसी अजनवी द्वारा मुकदमे में दायर विलंब आवेदन को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है । सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी तीसरे पक्ष के लिए देरी की माफ़ी के लिए आवेदन दायर करना अस्वीकार्य है, यह कहते हुए कि इस तरह का दृष्टिकोण किसी को भी मुकदमे में उनकी भागीदारी की परवाह किए बिना बहाली की मांग करने की अनुमति देगा।
सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस बीआर गवई एवं जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह कहा,
“विषय वाद की बहाली के लिए आवेदन दाखिल करने में देरी की माफी के लिए किसी अजनबी के आदेश पर दायर आवेदन पर विचार करना कानून में पूरी तरह से टिकाऊ नहीं है। माना जाता है कि प्रतिवादी नंबर 1 को विषय मुकदमे में पक्षकार भी नहीं बनाया गया। इस प्रकार, अजनबी के आदेश पर दायर किया गया आवेदन, जो कार्यवाही में एक पक्ष नहीं है, पूरी तरह से अवैध है। यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को मंजूरी दे दी जाती है तो किसी भी टॉम, डिक और हैरी को माफी के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति दी जाएगी। मुकदमे की बहाली के लिए आवेदन दाखिल करने में देरी हुई, भले ही वह विषय मुकदमे में पक्षकार न हो।”
दरअसल हुआ यह कि न्यायालय ने दो साल की देरी के बाद अजनबी द्वारा दायर आवेदन पर विचार करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले की आलोचना की। साथ ही इस तरह की कार्रवाई की आवश्यकता और औचित्य पर सवाल भी उठाया।नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया।
Case Title: विजय लक्ष्मण भावे बनाम पी एंड एस निर्माण प्राइवेट लिमिटेड