वरिष्ठ पत्रकार अजय पौराणिक की कलम से।
इस बार के इंदौर लोक सभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के मैदान में होने के बावजूद, प्रत्याशी शंकर लालवानी की तयशुदा जीत के बाद भी मध्यप्रदेश की इस महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा के सामने NOTA ( इनमें से कोई नहीं) ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
इंदौर में एन मौके पर भाजपा नेताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम से नामांकन तो वापस करवा लिया और बम को विधिवत भाजपा में शामिल भी कर लिया। लेकिन लोक सभा की पूर्व अध्यक्ष व आठ बार इंदौर से सांसद रहीं सुमित्रा महाजन के इसे नीति विरुद्ध व गैर जरूरी करार दिए जाने के बाद से मरी हुई कांग्रेस में जैसे फिर जान आ गई। महाजन के बयान ने न सिर्फ प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला को हाशिए पर ला दिया । बल्कि कांग्रेसियों के अलावा जन साधारण को भी उक्त घटनाक्रम और उससे भी ज्यादा NOTA के बारे में जागरूक करने क
गली, मोहल्ले, पान की दुकान, सब्जी मंडी, मॉल और कोर्ट परिसर तक में पिछले कई दिनों से NOTA लोगों की जुबान पर छाया हुआ है।
एक तरफ विपक्ष के लोग नोटा का बटन दबाने की पैरवी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के कद्दावर नेता भी नोटा की जगह समझदारी से मतदान की अपील करते नज़र आ रहे हैं।
ये पक्का है कि चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में ही आना है लेकिन फिर भी इंदौर में नोटा की लोकप्रियता ने भाजपा आलाकमान तक को इसके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।
वजह भी साफ है कि अगर भाजपा का 400 पार का नारा सच भी हो जाता है तब भी नोटा की लोकप्रियता को देखते हुए अगर इंदौर नोटा का इतिहास रच देता है तो ये भाजपा की प्रचंड जीत पर भी मखमल में टाट के पैबन्द जैसा होगा।
नोटा की वजह से जीत-हार पर भले ही कुछ खास फर्क न पड़े, चाहे कांग्रेस को कोई प्रत्यक्ष फायदा न हो या भाजपा को कोई राजनीतिक नुकसान न हो लेकिन अगर इंदौर में नोटा का इतिहास बना तो वह निश्चित तौर पर भाजपा की जीत के जश्न को फीका कर देगा।
देश में लगातार सात बार स्वच्छता का परचम लहराने वाले इंदौर से नोटा के रिकॉर्ड का संदेश भी पूरे देश की जनता तक जाएगा।
नोटा के रिकार्ड में सभी राजनीतिक दलों के लिये कहीं न कहीं यह अप्रत्यक्ष संदेश भी होगा कि लोकतंत्र में नीति विरुद्ध राजनैतिक हथकंडों को जनता जनार्दन चुपचाप देखने और सहन करने के बाद उसका माकूल जवाब भी दे सकती है।