भारत में करोड़ों लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग चुका है और दूसरे डोज की डेट पास आने लगी है। और इधर वैक्सीनेशन सेंटर पर भीड़ बढ़ने लगी है।
मध्यप्रदेश के कई इलाकों में संक्रमण की दर ज्यादा होने के कारण लोग डर से बाहर नहीं निकल रहे और अन्य भी कई कारण है।
सवाल यह उठता है कि यदि कोरोनावायरस संक्रमण के खिलाफ तैयार की गई वैक्सीन का दूसरा डोज सही समय पर ना लग पाए तो क्या होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन का सम्पूर्ण प्रभाव दूसरे डोज के बाद ही सुनिश्चित होगा। दूसरे डोज के बाद ही शरीर कोविड-19 से लड़ने के लिए अच्छे से तैयार हो पाएगा।
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अगर आप नियत समय पर डोज नहीं लेते हैं तो वैक्सीन का वैसा असर नहीं होगा जैसा कि होना चाहिए।
वैक्सीन के कारगर तरीके से काम करने के लिए यह भी जरूरी है कि दोनों डोज के बीच समय का सही फासला हो जैसा कि निर्धारित किया गया है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति दूसरा डोज समय पर नहीं लगवा पाता है तो समस्या हो सकती है।
कोरोना वैक्सीन के दो डोज ही क्यों?
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि दूसरा डोज समय पर नहीं लग पाने की स्थिति में क्या समस्या हो सकती है
लेकिन यह जरूर बताया कि दोनों डोज क्यों जरूरी है। सरकारी डॉक्टरों का कहना है कि वैक्सीन हमारे शरीर को कोविड-19 के वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए तैयार करता है जो एक समयबद्ध प्रक्रिया है।
यही वजह है कि यह दो डोज की वैक्सीन है। दूसरे डोज से व्यक्ति के शरीर में प्रतिरोधी क्षमता के साथ सही तरह से कोविड-19 सुरक्षा तंत्र विकसित होने में जरूरी मदद मिलती है।
दूसरा डोज नहीं लग पाया तो नुकसान क्या होगा
दूसरा डोज वैक्सीन की कारगर को लंबा और अधिक प्रभावी बनाता है। यदि वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता 94% है तो पहली डोज 60% सुरक्षा प्रदान करती है। वहीं दूसरी डोज का काम इसे 94% तक ले जाने का होता है। अगर दूसरा डोज नहीं लग पाया तो यह 60 प्रतिशत कारगरता भी समय के साथ कम हो सकती है।
सच्चाई यह है कि अभी विशेषज्ञ यह आंकलन करने की स्थिति में नहीं हैं कि वैक्सीन का दूसरा डोज नहीं लगवाने के सटीक तौर पर क्या असर होगा।
लेकिन हां यह तय है कि वैक्सीन अपना पूरा काम तभी शुरू कर पाती है जब दूसरा डोज लग जाए। सरकार ने वैक्सीन के दो डोज के बीच का अंतर भी बदल दिया है। पहले 4 सप्ताह था अब 8 सप्ताह कर दिया है।
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